समकालीन साहित्य केवल शब्दों का खेल नहीं है, बल्कि यह हमारे समय की सबसे क्रूर सच्चाइयों और सबसे कोमल भावनाओं का दस्तावेजीकरण भी है। हाल ही में साहित्य के गलियारों में दो अलग-अलग छोरों से उठी आवाजें—एक तरफ जसिंता केरकेट्टा की हिंदी कविता जो प्रकृति के विनाश पर चोट करती है, और दूसरी तरफ अमेरिकी कवि बिली कोलिन्स का नया संग्रह जो इंसानी जीवन में कुत्तों की भूमिका को रेखांकित करता है—जीवन और मृत्यु के चक्र को अनोखे ढंग से परिभाषित कर रही हैं।
सभ्यताओं के अंत की आहट और दम तोड़ती नदियाँ
जसिंता केरकेट्टा की चर्चित कविता ‘एक दिन जब सारी नदियाँ मर जाएँगी’ हमें उस भयानक भविष्य के रूबरू कराती है, जहाँ विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति अपनी अंतिम सांसें गिन रही है। कविता की पंक्तियां एक गंभीर चेतावनी की तरह गूंजती हैं कि कैसे ऑक्सीजन की कमी से नदियाँ मर रही हैं, लेकिन विडंबना यह है कि समाज इस त्रासदी से बेखबर है। कवयित्री ने एक बेहद मार्मिक चित्र खींचा है जहाँ मरे हुए पानी में इंसानी लाशें तैर रही हैं। यहाँ पानी का मरना केवल एक प्राकृतिक घटना नहीं है, बल्कि यह उस नैतिक पतन का प्रतीक है जहाँ लोग यह मान बैठे हैं कि नदी में शव बहा देने से उनके पाप धुल जाएंगे।
केरकेट्टा की कविता स्पष्ट करती है कि किसी के अपराध पानी में घुलते नहीं हैं, बल्कि वे भी उसी तरह तैरते रहते हैं जैसे नदी की सतह पर लाशें। यह रचना हमें झकझोरते हुए बताती है कि नदियाँ इस बात की गवाह हैं कि जब वे मरती हैं, तो उनके बाद सभ्यताओं के मरने की बारी आती है। जब ऑक्सीजन खत्म होने से नदियाँ दम तोड़ देंगी, तो उनमें केवल पानी नहीं, बल्कि अतीत की महान सभ्यताओं के अवशेष तैरते मिलेंगे। यह केवल जल प्रदूषण का मुद्दा नहीं है, बल्कि अस्तित्व का संकट है।
‘डॉग शो’: वफादारी और बिछड़ने का डर
जहाँ एक ओर केरकेट्टा की कविता सामूहिक विनाश की ओर इशारा करती है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका के पूर्व ‘पोएट लॉरिएट’ बिली कोलिन्स का नया कविता संग्रह ‘डॉग शो’ व्यक्तिगत प्रेम और नुकसान (loss) के डर को कुरेदता है। न्यूयॉर्क पब्लिक लाइब्रेरी के प्रतिष्ठित साहित्यकार कोलिन्स का मानना है कि प्रेम के सही अर्थ को वही समझ सकता है, जिसने कभी किसी कुत्ते को पाला हो। हाल ही में वरिष्ठ कला संवाददाता जेफरी ब्राउन के साथ अपनी बातचीत में कोलिन्स ने स्वीकार किया कि लिखते समय वे स्वयं को ‘आधा कुत्ता’ महसूस करते हैं। यह संग्रह उन 85 कुत्तों को समर्पित है जो उनके या उनके दोस्तों के जीवन का हिस्सा रहे हैं।
कोलिन्स अपने बचपन की एक घटना को याद करते हैं जिसने उनके लेखन को प्रभावित किया। जब उन्होंने काफी जिद्द के बाद अपने माता-पिता को कुत्ता पालने के लिए मनाया था, तब उनके पिता ने एक बहुत गहरी बात कही थी—”हम कुत्ता तो ला रहे हैं, लेकिन याद रखना, हम एक दर्द (heartache) खरीद रहे हैं।” यह एक ऐसा सार्वभौमिक सत्य है जिसे हर पेट-पेरेंट्स (pet parent) महसूस करता है; यह जानते हुए भी कि उनका प्यारा साथी उनसे पहले दुनिया छोड़ जाएगा, वे इस रिश्ते को अपनाते हैं।
बौद्ध भिक्षु सा जीवन और मृत्यु की दौड़
कोलिन्स अपनी कविताओं में भावुकता के अतिरेक से बचते हैं और जीवन की नश्वरता को एक अलग नजरिए से देखते हैं। उनकी कविता ‘ए डॉग ऑन हिज मास्टर’ में कुत्ता अपनी मृत्यु के बारे में पूरी तरह सचेत है। वह जानता है कि उसकी उम्र अपने मालिक से सात गुना तेजी से बढ़ रही है और एक दिन वह इस दौड़ में अपने मालिक को पीछे छोड़ देगा। कोलिन्स इसे दोस्ती का सबसे शुद्ध रूप मानते हैं—एक ऐसा रिश्ता जिसमें कोई मकसद नहीं होता, बस साथ वक्त बिताने की चाहत होती है।
अपनी एक अन्य कविता ‘धर्म’ (Dharma) में कोलिन्स कुत्तों की तुलना बौद्ध भिक्षुओं से करते हैं। वे कुत्तों के भौतिकवाद से मुक्त जीवन पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं। न उनके पास पैसे हैं, न जेब, न ही भविष्य की चिंता। वे बिना किसी टोपी या छाते के, बिना घर की चाबियों के घर से निकलते हैं। कोलिन्स के अनुसार, एक कुत्ता गांधी या थोरो (Thoreau) की तरह जीवन जीता है—सांसारिक बंधनों से पूरी तरह मुक्त। जहाँ केरकेट्टा की कविता में प्रकृति के दोहन से उपजा विनाश है, वहीं कोलिन्स की कविताओं में प्रकृति के एक जीव (कुत्ते) के साथ जीने में छिपा सुकून और अपरिग्रह का दर्शन है। ये दोनों साहित्यिक कृतियाँ अलग-अलग धरातल पर होते हुए भी अंततः जीवन की भंगुरता और हमारे अस्तित्व के ताने-बाने को समझने का प्रयास करती हैं।
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